Bhavishya Puran Gita Press Gorakhpur by Gita Press Gorakhpur

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नम्र निवेदन
विषय-वस्तु, वर्णनशैली तथा काव्य-रचनाकी दृष्टिसे भविष्यपुराण उच्चकोटिका ग्रन्थ है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, आख्यान-साहित्य, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेदादिसे सम्बन्धित विषयोंका अद्भुत संयोजन है। इसकी कथाएँ रोचक तथा प्रभावोत्पादक हैं। यह पुराण ब्राह्म, मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तर- इन चार मुख्य पर्वोंमें विभक्त है। मध्यमपर्व तीन तथा प्रतिसर्गपर्व चार अवान्तर खण्डोंमें विभक्त है। पर्वोंके अन्तर्गत अध्याय हैं, जिनकी कुल संख्या ४८५ है। यह पुराण भगवान् सूर्यकी महत्ताका सुन्दर प्रतिपादक है। प्रतिसर्गपर्वके द्वितीय खण्डके २३ अध्यायोंमें वेताल-विक्रम-संवादके रूपमें जो कथा-प्रबन्ध है, वह अत्यन्त रमणीय तथा मोहक है। रोचकताके कारण ही यह कथा-प्रबन्ध गुणाढ्यकी ‘बृहत्कथा’, क्षेमेन्द्रकी ‘बृहत्कथा-मञ्जरी, सोमदेवके ‘कथा-सरित्सागर’ आदिमें वेतालपञ्चविंशतिके रूपमें संगृहीत हुआ है। भविष्यपुराणकी इन्हीं कथाओंका नाम ‘वेतालपञ्चविंशति’ या ‘वेतालपञ्चविंशतिका’ है। इसी प्रकार प्रतिसर्गपर्वके द्वितीय खण्डके २४ से २९ अध्यायोंतक उपनिबद्ध ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ उत्तम कथा-साहित्य है। उत्तरपर्वमें वर्णित व्रतोत्सव तथा दान-माहात्म्यसे सम्बद्ध कथाएँ भी एकसे बढ़कर एक हैं। ब्राह्मपर्व तथा मध्यमपर्वकी सूर्य-सम्बन्धी कथाएँ भी कम रोचक नहीं हैं। आल्हा ऊदलके इतिहासका प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराणके आधारपर प्रचलित है।
भविष्यपुराणकी दूसरी विशेषता यह है कि यह पुराण भारतवर्षके वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहासका आधार है। इसके प्रतिसर्गपर्वके तृतीय तथा चतुर्थ खण्डमें इतिहासकी महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकोंने प्रायः इसीका आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदिका प्रामाणिक इतिहास निरूपित है।
इस पुराणकी तीसरी विशेषता यह है कि इसके मध्यमपर्वमें समस्त कर्मकाण्डका निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दानसे सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इतने विस्तारसे व्रतोंका वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्रमें मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रहके ग्रन्थमें। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्यमें मुख्यरूपसे भविष्यपुराणका ही आश्रय लिया गया है।
विषय-वस्तुकी लोकोपयोगिता एवं पाठकोंके बार-बार आग्रहको दृष्टिगत रखते हुए ‘कल्याण’ के छाछठवें वर्षके विशेषाङ्कके रूपमें पूर्व प्रकाशित ‘संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क’ को अब ‘संक्षिप्त भविष्यपुराण’ के रूपमें पाठकोंके समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। आशा है, गीताप्रेससे प्रकाशित अन्य पुराणोंकी भाँति इस पुराणको भी अपनाकर पाठकगण इससे भरपूर लाभ उठायेंगे। आकर्षक लेमिनेटेड आवरण, मजबूत जिल्द, ऑफसेटकी सुन्दर छपाई और उपासनायोग्य अनेक चित्र इसकी अन्य विशेषताएँ हैं।
प्रकाशक
584 Sankshipta Bhavishya Puran_Seption Dhola Frantzed by Sarvagya Sharda Peeth

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