Shiv Sahasra Nama Stotra Puja Prakashan by Arup Kaul PDF Download | शिव सहस्र नाम स्तोत्र पूजा प्रकाशन अरूप कौल द्वारा पीडीएफ डाउनलोड

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Shiv Sahasra Nama Stotra Puja Prakashan by Arup Kaul PDF Download

शिव सहस्र नाम स्तोत्र पूजा प्रकाशन अरूप कौल द्वारा पीडीएफ डाउनलोड

भगवान विष्णु द्वारा किए गये शिव सहस्रनाम के पाठ की कथा एक समय की बात है, दैत्य अत्यन्त प्रबल होकर लोगों को पीड़ा देने और धर्म का लोप करने लगे। उन महाबली और पराक्रमी दैत्यों से पीड़ित हो देवताओं ने देवरक्षक भगवान विष्णु से अपना सारा दुःख कहा। तब श्रीहरि कैलाश पर जाकर भगवान् शिव की विधिपूर्वक आराधना करने लगे। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करते तथा प्रत्येक नाम पर एक कमल चढ़ाते थे। तब भगवान् शंकर ने विष्णु के भक्तिभाव की परीक्षा करने के लिये उनके लाये हुए एक हजार कमलों में से एक को छिपा दिया। शिव की माया के कारण घटित हुई इस अद्भुत घटना का भगवान् विष्णु को पता नहीं लगा। उन्होंने एक फूल कम जानकर उसकी खोज आरम्भ की। दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रत का पालन करने वाले श्रीहरि ने भगवान् शिय की प्रसन्नता के लिये उस एक फूल की प्राप्ति के उद्देश्य से सारी पृथ्वी पर भ्रमण किया। परंतु कहीं भी उन्हें वह फूल नहीं मिला। तब विशुद्धचेता विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिये अपने कमलसदृश एक नेत्र को ही निकालकर चढ़ा दिया। यह देख सबका दुःख दूर करने वाले भगवान शंकर बड़े प्रसन्न हुए और वहीं उनके सामने प्रकट हो गये। प्रकट होकर श्रीहरि से बोले-‘हरे ! मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। तुम इच्छानुसार वर माँगो। मैं तुम्हें मनोवाञ्छित वस्तु दूँगा। तुम्हारे लिये मुझे कुछ भी अदेय नहीं है।’ 3

विष्णु बोले-नाब! आपके सामने मुझे क्या कहना है। आप अन्तर्यामी हैं, अतः सब कुछ जानते हैं, तथापि आपके आदेश का गौरव रखने के लिये कहता हूँ। दैत्यों ने सारे जगत को पीड़ित कर रखा है। सदाशिव! हम लोगों को सुख नहीं मिलता। स्वामिन्! मेरा अपना अस्त्र-शस्त्र दैत्यों के वध में काम नहीं देता। परमेश्वर ! इसीलिये मैं आपकी शरण में आया हूँ। सूतजी कहते हैं-श्रीविष्णु का यह बचन सुनकर देवाधिदेव महेश्वर ने तेजोराशिमय अपना सुदर्शन चक उन्हें दे दिया। उसको पाकर भगवान् विष्णु ने उन समस्त प्रबल दैत्यों का उस चक के द्वारा बिना परिश्रम के ही संहार कर डाला। इससे सारा जगत् स्वस्थ हो गया। देवताओं को भी सुख मिला और अपने लिये उस आयुध को पाकर भगवान विष्णु जी अत्यन्त प्रसन्न एवं परम सुखी हो गये। ऋषियों ने पूछा-शिव के सहस्र नाम कौन-कौन हैं, बताइये, जिनसे संतुष्ट होकर महेश्वर ने श्रीहरि को चक प्रदान किया था। उन नामों के माहात्य का वर्णन कीजिये ।। श्रीविष्णु के ऊपर शंकरजी की जैसी कृपा हुई थी, उसका यथार्थरूप से प्रतिपादन कीजिये। शुद्ध अन्तःकरण वाले उन मुनियों की वैसी बात सुनकर सूत ने शिव के चरणारविन्दों का चिन्तन करके इस प्रकार कहना आरम्भ किया। ★★★

भगवान विष्णु द्वारा पठित शिवसहस्रनाम-स्तोत्र सूत उवाच श्रूयतां भो ऋषिश्रेष्ठा येन तुष्टो महेश्वरः । तदहं कथयाम्यद्य शैवं नामसहस्रकम् ।।११। सूतजी बोले-मुनिवरो ! सुनो, जिससे महेश्वर संतुष्ट होते हैं, वह शिवसहस्रनाम स्तोत्र आज तुम सबको सुना रहा हूँ। विष्णुरुवाच शिवो हरो मृडो रुद्रः पुष्करः पुष्पलोचनः । अर्थिगम्यः सदाचारः शर्वः शम्भुर्महेश्वरः ।। २।। भगवान विष्णु ने कहा-१ शिवः-कल्याण स्वरूप, २ हरः- भक्तों के पाप-ताप हर लेने वाले, ३ मृङः-सुखदाता, ४ रुद्रः-दुःख दूर करने वाले, ५ पुष्करः-आकाशस्वरूप, ६ पुष्पलोचनः पुष्प के समान खिले हुए नेत्र वाले, ७ अर्थिगम्यः प्रार्थियों को प्राप्त होने वाले, ८ सदाचारः-श्रेष्ठ आचरण वाले, ६ शर्व-संहारकारी, १० शम्भुः-कल्याण निकेतन, ११ महेश्वरः- महान् ईश्वर ।।२।।

चन्द्रापीडश्चन्द्रमौलिर्विश्वं विश्वम्भरेश्वरः । वेदान्तसारसंदोहः कपाली नीललोहितः ।। ३।। १२ चन्द्रापीडः चन्द्रमा को शिरोभूषण के रूप में धारण करने वाले, १३ चन्द्रमौलिः-सिर पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करने वाले, १४ विश्वम्-सर्वस्वरूप, १५ विश्वाम्भरेश्वरः- विश्व का भरण-पोषण करने वाले श्रीविष्णु के भी ईश्वर, १६ वेदान्तसारसंदोहः- वेदान्त के सारतत्व सच्चिदानन्दमय ब्रह्म की साकार मूर्ति, १७ कपाली-हाथ में कपाल धारण करने वाले, १८ नीललोहितः (गले में) नील और (शेष अंगों में) लोहित वर्ण वाले । । ३ ।। ध्यानाधारोअपरिच्छेद्यो गौरीभर्ता गणेश्वरः । अष्टमूर्तिविश्वमूर्तिस्त्रिवर्गस्वर्गसाधनः १६ ध्यानाधारः- ध्यान के आबार, २० अपरिच्छेद्यः देश, काल और वस्तु की सीमा से अविभाज्य, २१ गौरीभर्ता-गौरी अर्थात् पार्वतीजी के पति, २२ गणेश्वरः प्रमथगणों के स्वामी, २३ अष्टमूर्तिः जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी और यजमान-इन आठ रूपों वाले, २४ विश्वमूर्तिः अखिल ब्रह्माण्डमय विराट् पुरूष, २५ त्रिवर्गस्वर्गसाधनः धर्म, अर्थ, काम तथा स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाले । ।४।। ज्ञानगम्यो दृढप्रज्ञो देवदेवस्त्रिलोचनः । वामदेवो महादेवः पटुः परिवृढो दृढः ।।५।। पूजा प्रकाशन, पुल कुतब रोड़, दिल्ली-११०००६ 6

 

 

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